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Friday, 20 December 2013

कला और व्यसन का सम्बन्ध ----

कला और व्यसन का सम्बन्ध ----
आज फिर दो विचारको और कलाकारो के बीच ये चिंतन करने के लिए मस्तिष्क की नसो में रक्त की तीव्रता बढ़ गयी । अब तक तो केवल ये ही सुनने में आ रहा है कि कलाकार की मजबूरी है अपनी कला के लिए सिगरेट के कश या दो पैग
अनशन से पहले दिन भी --अखिलेश जी ने कत्थक के गुरु की जो बाते प्रभु नारायण जी के सामने उनके ऑफिस में कही थी वो सब सुन्ना मेरे लिए कठिन था ।
नाम ले लेकर उन्होंने  कभी राजकपूर की बात कही कभी महत्वांकांक्षाओ के बीच झूलतीअदाकार
राज कमल जी फ़िल्म की  बात कर रहे थे --मुझे भी कहा --अनशन पर --समग्र क्रांति ,अंतर्द्वंद ,--नाम भी लिए गए है २-३ महीनो का ही प्रोजेक्ट है --
परन्तु मै --जैसी हूँ  हूँ मै ---मै समझौतो की जिंदगी नहीं जी सकती ------इस लेख को समय निकल कर पूरा करना है ------------क्रमश : 


Thursday, 19 December 2013

समलैंगिकता एक पहेली या पहल --प्रकृति या प्रवृति की

समलैंगिकता एक पहेली या पहल --प्रकृति या प्रवृति की -----------आज उच्चतम न्यायालय द्वारा इसे
अपराध कहे जाने पर फिर से ये मुद्दा -विरोध ,प्रतिरोध ,शर्म -बेशर्मी की गलियो से होता हुआ चौराहे पर आ खड़ा है ,जहाँ से एक रास्ता -----अपने माता पिता से दूर होता हुआ ,दूसरा मित्रो से तीसरा ,समाज से और
चौथा अपने आप से ----इतनी बेचैनियों के बीच एक मानव देह और मस्तिष्क ---


क्या अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया इस तरफ कि ऐसे सम्बन्धो का जन्म क्यूँ होता है और इन सम्बन्धो को अभी तक मानव की आवश्यकता क्यूँ नहीं समझा गया -अगर कुछ सन्यासी हो सकते है कुछ घर छोड़ कर सकते है कुछ अपराधी और कुछ शराब पीकर बच्चे पैदा करते रहते है तो दो मनुष्यो को साथ रहना अच्छा लगता है तो इस सम्बन्ध को विवाह जैसी ही मान्यता मिले ऐसा जरुरी तो नहीं परन्तु विश्वास और प्यार के इस रिश्ते को भी अधिकार और नाम देकर उनकी व्यवस्था करना ही चाहिए ताकि उनकी संपत्ति पर साझा अधिकार हो सके -ये जरुर है कि लड़के लड़की के सम्बन्धो पर ,मित्रता पर समाज अभी सामान्य प्रतिक्रिया नहीं देता इसलिए उस पर बहुत जल्दी ध्यान जाता है और ऐसी मित्रता पर गौर नहीं किया जाता ऐसी हालत में साथ काम करने वाले इस बात का गलत फायदा उठाकर नए अपराधो का अध्याय भी लिखेंगे ।रही नामकरण की बात तो  इस सम्बन्ध का कुछ और नाम होना चाहिए विवाह नहीं क्यूंकि विवाह --की मान्यता  में  संतान ,त्याग ,और परिवार ,समाज ,संस्कार जैसे तत्वो की अपनी एक महत्वपूर्ण जगह है -
और ये सम्बन्ध बहुत अधिक व्यक्तिगत अपेक्षाओ पर आधारित है ।
चूँकि ऐसा पर्दे के पीछे होना -इसे और अधिक विकृत बना सकता है इसलिए मान्यता मिलना भी जरुरी है --
आगे हो सकता है -पशुओ के साथ भी -मानव के ऐसे ही सम्बन्ध मान्यता पा ले --ऐसी बातो से घबराने के
बजाय समाज को संवेदनशील होकर इनकी मानसिकता को भी समझना होगा --जब अभी तक हम उस सभ्य समाज का निर्माण नहीं कर सके जहाँ -मानव जीवन के सौंदर्य की अनुभूति हो सकती तो ऐसी विडम्बनाएंतो आनी  ही थी या तो सभ्य समाज निर्माण की गति को तेज किया जाए या ऐसी उत्पन्न समस्याओ को सहजता व् समझदारी से निबटाया जाए 

ऐसी समस्याए उत्पन्न होने का बड़ा कारण ---माता पिता के स्नेह , दोस्ती देख भाल व् निरीक्षण का अभाव भी है । इसके साथ साथ विचारो का दृढ न होना जो घर से ही होते है --

 ------------इन्दू 

Monday, 2 December 2013

विचारशक्ति

जिस प्रकार किसी के चेहरे के कई फ़ोटो उसके चेहरे की सुंदरता को कम 

करते है और कुछ बढ़ा देते है परन्तु भाव भंगिमाएं और मुद्रा बहुत कुछ 

कह जाती है उसी प्रकार कोई भी विचार प्रस्तुति अपने 

इसी तरह विचारक के व्यक्तित्व का दर्पण हो जाती है । सुंदर तस्वीर 

खीचने में फोटो ग्राफर की  आँख  ,कल्पना शीलता और उपलब्ध यंत्रो

व् अवसर से बहुत से पहलु बिन कहे भी उजागर हो जाते है ---उसी प्रकार 

कोई बात कह कर समाज की प्रतिक्रियाओ के दर्पण में 

सामाजिक विचारशक्ति का परिचय प्राप्त होता है -