यौवन था
अंगडाई बन कभी चहका
फूलो में पहुच जब महका
पलकों में आंसू रोक सका
ये भक्ति में कभी आ उतरा
आहवाहन में बन खतरा
यूँ बचा लिया बे मौत से
लेखन साँसों का कारण
पल पल को पालता सा
अपशब्दों को टालता सा
कल्पना की गलिओ में
गालिओ से
बचाता
रहा
हां ये लेखन -जो तब भी था
आज भी है और
प्राण रहने तक रहेगा
क्यूंकि शब्दों में ही
आत्मा बस्ती है
जीना है तो लिखना है
लिखना है
तभी जीना है
साँसों का कारण
मेरा लेखन
लिखना है
तभी जीना है
साँसों का कारण
मेरा लेखन
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आपका स्वागत है , जो आपने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरे लेखन को पढ़ा और सुझाव, प्रतिक्रिया एवं आशीर्वाद दिया । आपका ह्रदय से आभार एवं मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए साधुवाद। पुनः आगमन की प्रतीक्षा में ।